SPIRITUALITY IN HINDI

Spirituality in hindi

Spirituality in hindi

Blog Article

Spirituality in hindiSpirituality in hindiadhyatmikta kya hai

आध्यात्मिकता के बारे समाज में कई बाते होती रहती हैं, लोगों का मानना हैं को आध्यात्मिकता जीवन जीने का तरीका है जो सामान्य जीवन से बहुत कठिन हैं, जो आध्यात्मिक होना चाहता हैं उसे घर गृहस्थी से दूर रहना अनिवार्य हैं, लेकिन साधकों यह सारा ज्ञान वही लोग देते हैं जो वास्तविक नहीं हैं अगर आप भी ऐसा ही कुछ मान बैठे है तो आप भी अनजान हैं।

आध्यात्मिकता का बाहरी जगत से कोई संबंध नहीं हैं यह तो हर एक व्यक्ति के अंदर का विषय हैं।

जो व्यक्ति घर गृहस्थी में और सांसारिक रिश्तों में रहता हैं आवश्यक नहीं की वह आध्यात्मिक नही हो सकता, और वह जो घर गृहस्थी से दूर सभी रिश्ते नाते तोड़ कर किसी अकेली जगह जाकर बस जाएं उसे तो आध्यात्मिक ही होना चाहिए ऐसा भी नहीं हैं, जैसी हमने कहां आध्यात्मिकता का बाहरी जगत से कोई लेना देना नहीं है तो हम इस बाहरी गुणों से आध्यात्मिक पर भला कैसे बात कर सकते हैं।

आध्यात्मिकता क्या है?


साधकों ! आध्यात्मिकता एक विस्तारित विषय हैं इसे हम कुछ वाक्यों में नहीं समझ सकते लेकिन हम इसका अर्थ अवश्य जान सकते हैं।

आध्यात्मिकता का अर्थ होता हैं स्वयं को थोड़ा अधिक जानना यह मन और बुद्धि का पूर्ण ज्ञान होता हैं। आध्यात्मिकता के द्वारा ही व्यक्ति में सही निर्णय लेने के समझ आ सकती है जो इसे पशु पक्षियों से अलग बनाती हैं। इतना ही नहीं बल्कि आध्यात्मिकता के द्वारा इस संसार के अनसुलझे रहस्य भी सुलझ जाते हैं।

आप इस संसार में क्यों हैं, आपके जीवन का उद्देश क्या होना चाहिए, आपके लिए कोनसा निर्णय सही हैं ऐसे प्रश्नों के सही उत्तर आध्यात्मिकता द्वारा प्राप्त होते हैं।

आध्यात्मिकता एक जीवन जीने का तरीका है, जिससे मनुष्य स्वयं को अच्छी तरह से जान सकते हैं और इस बात से अवगत हो सकता है की कोनसा रास्ता उद्धार का है कोनसा रास्ता सर्वनाश का हैं। आध्यात्मिकता के द्वारा ही वह ये जान सकता है की उसके दुखों और आनंद का कारण यह बाहरी संसार नही हैं बल्कि वह स्वयं ही इसका कारण हैं।

आध्यात्मिकता के कारण ही वह यह जान सकता है की वास्तविक परमआनंद संसार, शरीर और विषयों के कारण नही हैं जिसे वह इन्ही विषयों के कारण मानता था।

आध्यात्मिकता शुद्ध आत्मा का ज्ञान है जो परम आत्मा से भिन्न नहीं है आध्यात्मिकता ही वह विषय है जिसमे मनुष्य आत्म को संसार से मुक्त करता है और परमआत्मा के विलीन हो जाता हैं।

जब कोई साधक आध्यात्मिक जीवन मार्ग पर चलता हैं तो वह सांसारिक विषयों के बंधन से आत्म को मुक्त करता हैं वह शुद्ध पवित्र परमात्मा के साथ एक हो जाता हैं इसे दिव्यज्ञान या आत्मसाक्षत्कार कहा जाता हैं, दिव्यज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति अशांति भरे जीवन से मुक्त होकर परमशांति को प्राप्त होता हैं।

आध्यात्मिक व्यक्ति कैसे होता है?


साधकों जैसे हम जानते है आध्यात्मिकता का बाहरी वातावरण से कोई संबंध नहीं है यह हर के अंदर का विषय हैं, लेकिन एक अध्यात्म में लीन योगी में कुछ दैवी गुण पाए जाते हैं।

  • आध्यात्मिक व्यक्ति स्वयं के संतुष्ट रहता हैं।

  • एक आध्यात्मिक व्यक्ति आत्मा को जानने वाला होता हैं।

  • आध्यात्मिक व्यक्ति का मन लाभ हानि, जय पराजय, सुख दुख, मान अपमान इनसे विचलित नहीं होता।

  • एक आध्यात्मिक व्यक्ति विषयों के प्राप्ति आसक्त नहीं होता, क्योंकि वह ये अच्छी तरह से जान लेता हैं यह विषय बंधनों के कारण हैं। जिससे मनुष्य जीवन के सुख दुख, जन्म मृत्यु, जय पराजय काम क्रोध इत्यादि में उलझा रहता हैं और आत्मा के वास्तविक स्वरूप के नहीं जान पाता।

  • एक आध्यात्मिक व्यक्ति के हृदय में सभी जीवों के प्रति करुणा भाव होता हैं वह अहिंसा, क्षमा, संतोष से पूर्ण होता हैं।

  • एक आध्यात्मिक व्यक्ति पहले समाज और दूसरों कल्याण का विचार करता हैं, क्योंकि वह स्वार्थी नहीं होता।

  • उसमे अहंकार का अभाव होता हैं।

  • वह किसी से स्पर्धा नहीं या किसकी तुलना नहीं करता।


अन्य पढ़े>

Report this page